रंगीन फ़िल्म, बर्फ़ के सुन्दर नज़ारे, राजेन्द्र कुमार की स्कीइंग और त्याग, फ़िरोज़ खान की दोस्ती, साधना का रोना और अपना पाँव काटने की कोशिश करना, नाज़िमा की चीखें, नज़ीर हुसैन का रोते हुए कहना “ बेटी, अपने खानदान की इज़्ज़त अब तुम्हारे हाथ में है ”
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' ‘ ट्रेड यूनियनों के “ प्रतिक्रियावादीपन ” से डरना, इससे कन्नी काटने की कोशिश करना, इसे छलांग मारकर पार करने की सोचना सबसे बड़ी बेवकूफी होगी, क्योंकि ऐसा करके हम सर्वहारा वर्ग के हिरावल के रूप में वह आवश्यक काम भूल जाएंगे जो मजदूर वर्ग और किसानों के सबसे पिछड़े स्तरों तथा समूहों को शिक्षा दीक्षा और नई चेतना देने तथा उन्हें नए जीवन की ओर खींचने में निहित है ।